कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना
हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने
बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
तुम किसी के भी हो नहीं सकते
तुम को अपना बना के देख लिया
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
कुछ अजब रंग है ज़माने का
जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
बार-हा आज़मा के देख लिया
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की
अब ज़माना है बेवफ़ाई का
सीख लें हम भी ये हुनर शायद
तुम जफ़ा पर भी तो नहीं क़ाएम
हम वफ़ा उम्र भर करें क्यूँ-कर
अधूरी वफ़ाओं से उम्मीद रखना
हमारे भी दिल की अजब सादगी है
हुसैन-इब्न-ए-अली कर्बला को जाते हैं
मगर ये लोग अभी तक घरों के अंदर हैं
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